8 अप्रैल को हनुमान जयंती यानी हनुमानजी का प्राकट्योत्सव है। इस दिन हनुमानजी के अलग-अलग स्वरूप की पूजा करने की परंपरा है। हनुमानजी का एक स्वरूप पंचमुखी भी है। इस स्वरूप की पूजा करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और अनजाने भय से मुक्ति मिलती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और श्रीराम कथाकार पं. मनीष शर्मा के अनुसार त्रेता युग में श्रीराम और रावण के बीच युद्ध चल रहा था। श्रीराम के प्रहारों से रावण की सेना खत्म हो रही थी। उस समय रावण ने अपने मायावी भाई अहिरावण को बुलाया। अहिरावण देवी भवानी का साधक था और तंत्र-मंत्र का जानकार था। उसने अपनी साधना से श्रीराम की सेना को निद्रा में डाल दिया। इसके बाद वह श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ पाताल लोक ले गया।
कुछ समय बाद जब अहिरावण की माया हटी तब विभीषण समझ गया कि ये काम अहिरावण ही कर सकता है। तब विभीषण ने हनुमानजी को पूरी बात बताई और श्रीराम-लक्ष्मण की मदद के लिए पाताल लोक भेज दिया। हनुमानजी तुरंत ही पालाल लोक की ओर चल दिए। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि अहिरावण ने देवी भवानी को प्रसन्न करने के लिए पांच दिशाओं में दीपक जला रखे हैं। विभीषण ने उन्हें बताया था कि जब तक ये पांच दीपक नहीं बुझेंगे, तब तक अहिरावण को पराजित करना मुश्किल है। हनुमानजी ने पांचों दीपक को एक साथ बुझाने के लिए पंचमुखी स्वरूप धारण किया और पांचों दीपक एक साथ बुझा दिए।
इसके बाद अहिरावण की शक्तियां क्षीण होने लगी और हनुमानजी ने उसका वध कर दिया। अहिरावण के वध के बाद उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण को स्वतंत्र कराया और पुन: उन्हें लेकर लंका के युद्ध मैदान में पहुंच गए। इस कथा की वजह से हनुमानजी के पंचमुखी स्वरूप की पूजा की जाती है।
हनुमानजी पंचमुखी स्वरूप में उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख और पूर्व दिशा में हनुमान मुख है। जो भक्त हनुमानजी के इस स्वरूप की पूजा करते हैं, उन्हें अनजाने भय से मुक्ति मिलती है। आत्मविश्वास बढ़ता है और मानसिक तनाव दूर होता है। इस स्वरूप की तस्वीर या प्रतिमा के सामने बैठें और दीपक जलाकर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।